कीन्स के आधारभूत समीकरणों की आलोचनात्मक व्याख्या

कीन्स ने मुद्रा मूल्य निर्धारण के लिए दो आधारभूत समीकरण दिये हैं। प्रथम समीकरण में वे उन तत्वों का विवेचन करते हैं, जो उपभोग की वस्तुओं के मूल्यों को निर्धारित करते हैं, जबकि द्वितीय समीकरण में वे उन शक्तियों का वर्णन करते हैं, जो सम्पूर्ण उत्पादन के मूल्य को निर्धारित करते हैं।

कीन्स के मौद्रिक समीकरणों की आलोचना

प्रथम समीकरण-

P = – E/O + I-S/O

इस समीकरण में –

P = उपभोक्ता पदार्थो का मूल्य

E = किसी अवधि में समाज की आय

I = आय (E) का वह भाग, जो विनियोग पदार्थों के उत्पादन से हुआ है या नये विनियोगों का लागत मूल्य ।

S = बचत

0 = किसी अवधि में वस्तुओं के उत्पादन की कुल मात्रा चूँकि उपभोग की एक इकाई का मूल्य P है, इसलिए PXR से अभिप्राय बाजार में मिलने वाले उपभोक्ता पदार्थो के कुल मूल्य से है, जो कि समाज की कुल आय (E) में से समाज की कुल बचत (S) घटा देने पर शेष बचता है, अर्थात् PXR=E – S

E /O कुल उत्पादन की प्रति इकाई लागत है। उपभोक्ता पदार्थों की कुल उत्पादन मात्रा E – I है । इस प्रकार उपभोग पदार्थों की बिक्री से प्राप्त होने वाला लाभ (E-S) = ( S – I) अथवा (I-S) के बराबर है और प्रति इकाई लाभ I-S/R है । अन्तिम रूप में समीकरण प्रति इकाई R उपभोक्ता पदार्थ का मूल्य (P) बताता है, जो कि निम्नलिखित तीन कारणों में परिवर्तन होने पर प्रभावित हो सकता है।

(i) बचत (S) में परिवर्तन

(ii) वस्तुओं के प्रति इकाई उत्पादन लागत व्यय में परिवर्तन अर्थात् E/O में परिवर्तन

(iii) नयी विनियोग वस्तुओं के उत्पादन व्यय (I) में परिवर्तन

द्वितीय समीकरण – 

π= E/O + I-S/R

इस समीकरण में-

π = O उत्पादन की एक इकाई का मूल्य। इस समीकरण के अनुसार ग (उत्पादन इकाई) का मूल्य यथास्थिर रहेगा। जब वस्तुओं की एक इकाई की उत्पादन लाग

E /O भी यथास्थिर रहे, तो इसके मूल्य में परिवर्तन निम्नलिखित तीन कारणों से हो सकते हैं –

(i) नयी विनियोग वस्तुओं के बाजार मूल्य में परिवर्तन

(ii) बचत में परिवर्तन

(iii) वस्तु की प्रति इकाई उत्पादन लागत (E) में परिवर्तन ।

मौलिक समीकरणों के गुण

(Merits of Fundamental Equations)

(1) इन समीकरणों में मुद्रा के स्थान पर उत्पादन (O), उपभोग, (R) बचत (S), विनियोग (I) व आय (E) को महत्व देकर नये प्रायोगिक तत्वों का समावेश किया गया है|

(2) इन समीकरणों का प्रयोग व्यापार चक्र की विभिन्न अव्यवस्थाओं को समझाने में किया गया है।

आलोचनायें (Criticisms)

(i) इन समीकरणों के तत्त्वों को आसानी से अंकों में निर्धारित नहीं किया जा सकता

(ii) यह आवश्यक नहीं है कि सदैव D = R + S हो ।

(iii) यह समीकरण मूल्यों में होने वाले परिवर्तन की क्रय विधि को स्पष्ट करने में सर्वथा असमर्थ रहे हैं।

(iv) ‘ये प्रायः स्थिर अवस्था में लागू होते हैं, जबकि व्यावहारिक जगत प्रावैगिक है।

(v) ये समीकरण मुद्रा के मूल्य को प्रभावित करने वाले सभी तत्वों की व्याख्या नहीं करते ।

(vi) कीन्स के मौलिक समीकरण स्थिर उत्पादन (O) की मान्यता पर आधारित हैं।

(vii) ब्याज दर के स्थान पर सीमान्त दक्षता अधिक महत्वपूर्ण है।

(viii) समीकरणों में बचत तथा विनियोग की समानता को आर्थिक स्थिरता का अभिसूचक माना गया है, परन्तु व्यवहार में आर्थिक स्थिरता की दशा में भी बचत एवं विनियोग समान हो सकते हैं।

यह कारण सन्तोषजनक नहीं है कि S.1, I में अन्तर अर्थव्यवस्था में लाभ-हानि उत्पन्न होनेका प्रमुख कारण है।

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